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-फ़िरदौस ख़ान
अमूमन मर्दों को संगदिल समझा जाता है…संगदिल मानकर उन्हें बेदर्द, निर्मोही जैसे संबोधन दे दिए जाते हैं… कथा -कहानियों में भी नायिकाएं अपने प्रीतम को ऐसे ही नाम से संबोधित करते हुए शिकायत करती हैं… माना जाता है कि महिलाएं ही बेहद जज़्बाती होती हैं…और किसी भी रिश्ते का टूटने का दर्द सबसे ज़्यादा उन्हें ही होता है…जबकि ऐसा नहीं है, मर्द भी रिश्तों को लेकर इतने ही भावुक होते हैं…यह बात अलग है कि वे अपने जज़्बात को बयान नहीं कर पाते…
ब्रिटेन में हाल ही में हुए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि दर्द सहन करने की क्षमता उम्र के साथ विकसित होती है. कम उम्र के मर्द इतने मज़बूत नहीं होते कि वे टूटे हुए रिश्ते के दर्द को बर्दाश्त कर सकें… मर्द अपनी भावनाएं दूसरों के साथ नहीं बांटते हैं, क्योंकि उनकी परवरिश ही ऐसी होती है…उन्हें बचपन से ही यह बताया जाता है कि लड़कियों के मुक़ाबले वे ज़्यादा मज़बूत हैं… इस मानसिकता के चलते वे अपनी भावनाओं को अपने भीतर ही समेटे रहते हैं…वे अपनी भावनाएं केवल प्रेमिका या साथी के साथ बांटते हैं ऐसे में उनके दूर हो जाने पर वे भावनात्मक तौर पर बेहद कमज़ोर हो जाते हैं…
लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज की समाजशास्त्री प्रोफेसर मिलैनी बर्टले के मुताबिक़ मर्द भी महिलाओं जैसा ही नाज़ुक दिल रखते हैं… लेकिन महिलाओं के पास अपने दुख-दर्द बांटने के लिए परिवार और दोस्त होते हैं, जबकि मर्दों के बीच प्रतियोगिता ज़्यादा होती है और वे एक-दूसरे की भावनाओं का क़द्र नहीं करते हैं…रिश्ते मर्दों को भावनात्मक मज़बूती देते हैं, इसलिए रिश्ते टूटने पर वे गहरे अवसाद में चली जाते हैं…
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