Menu
blogid : 11632 postid : 646859

तुलसी बांटने की ख़ुशी…

Firdaus Diary
Firdaus Diary
  • 57 Posts
  • 271 Comments


फ़िरदौस ख़ान

कल शाम की बात है. हमारे पड़ौस में रहने वाली गुंजा ने आवाज़ दी. हमने छत से देखा, तो वह घर के सामने बच्चे को गोद में लिए खड़ी थी. उसने कहा- क्या तुलसी का एक पौधा मिल सकता है? हमने कहा कि सुबह ले लेना, क्योंकि सूरज छुपने के बाद पौधों को तोड़ना या उखाड़ना अच्छा नहीं माना जाता. उसने भी हमारी बात के समर्थन में सर हिलाया और चली गई. आज दिन निकलते ही वह तुलसी का पौधा लेने आ गई. जब उसने मरुआ तुलसी देखी, तो कहने लगी- क्या एक पौधा मरुआ का भी मिल सकता है? हमने कहा, क्यों नहीं. हमारे छोटे भाई ने उसे दो पौधे दे दिए और वह उन्हें लेकर खु़शी-ख़ुशी चली गई. अकसर छोटी-छोटी चीज़ें इंसान को बहुत खु़शी और सुकून देती हैं. हमारे घर के लोग ये खु़शी अकसर बांटते रहते हैं. हमारे घर तुलसी के बहुत से पौधे हैं. हमारे इलाक़े के लोग अकसर हमारे घर से तुलसी के पौधे ले जाते हैं. अब तो हालत यह है कि लोग अपने परिचितों को भी हमारे यहां के पौधे भेंट करते हैं. इतना ही नहीं, पौधे बेचने वाले भी हमारे यहां से अकसर तुलसी के पौधे ले जाते हैं. यह सिलसिला पिछले क़रीब डेढ़ दशक से चल रहा है.

हिंदू धर्म में तुलसी को पवित्र माना जाता हैं. लोग घर के आंगन में तुलसी का चौरा बनाते हैं और हर सुबह उसकी पूजा करते हैं. हमारे यहां तुलसी की कई क़िस्में हैं, जिनमें प्रमुख तुलसी यानी ऑसीमम सैक्टम, काली तुलसी और मरुआ तुलसी शामिल हैं. तुलसी कई क़िस्म की होती है, जिनमें ऑसीमम अमेरिकन यानी काली तुलसी, ऑसीमम वेसिलिकम यानी मरुआ तुलसी, ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम, ऑसीमम ग्रेटिसिकम यानी राम तुलसी, बन तुलसी, ऑसीमम किलिमंचेरिकम यानी कपूर तुलसी, बेल तुलसी, ऑसीमम सैक्टम यानी श्री तुलसी और ऑसीमम विरिडी यानी जंगली तुलसी शामिल है. इनमें ऑसीमम सैक्टम को सबसे पवित्र तुलसी माना जाता है. इसकी दो प्रजातियां हैं, पहली श्री तुलसी जिसकी पत्तियां हरी होती हैं और दूसरी कृष्णा तुलसी, जिसकी पत्तियां कुछ बैंगनी रंग की होती हैं. गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, लेकिन ज़्यादातर विद्वानों का मत है कि दोनों तरह की तुलसी के गुण एक जैसे ही होते हैं.

क़ाबिले-ग़ौर है कि मंदिरों में देवताओं को तुलसी चढ़ाई जाती है. गया के विष्णुपद मंदिर को ही लीजिए, यहां हर रोज़ श्रीविष्णु के चरणों में तुलसी अर्पित की जाती है. पितृपक्ष मेले के दौरान श्रृंगार और पूजा अर्चना में हर रोज़ क़रीब एक क्विंटल तुलसी की खपत होती है. शहर के आसपास के इलाक़ों में तुलसी का उत्पादन होता है. इसके अलावा पश्चिम बंगाल से भी तुलसी मंगाई जाती है. पूजन कार्यों में तुलसी को प्रमुखता दी जाती है. मंदिरों में चरणामृत में भी तुलसी का ही इस्तेमाल होता है. माना जाता है कि यह अकाल मौत से बचाने वाली और सर्व व्याधियों का नाश करने वाली हैं. ख़ास बात यह है कि यही पूज्य तुलसी श्रीगणेश की पूजा में निषिद्ध मानी गई हैं. एक कथा के मुताबिक़ एक बार तुलसी देवी नारायण परायण होकर तपस्या के निमित्त से तीर्थों में भ्रमण करती हुई गंगा तट पर पहुंचीं. वहां उन्होंने श्रीगणेश को देखा, जो योगीराज श्रीकृष्ण की आराधना में लीन थे. उन्हें देखते ही तुलसी उनके रूप पर मोहित हो गईं उनका ध्यान भंग करने के लिए श्रीगणेश का उपहास उड़ाने लगीं. ध्यानभंग होने पर श्रीगणेश ने उनसे उनका परिचय पूछा और उनके वहां आगमन का कारण जानना चाहा. इस पर तुलसी ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा. श्रीगणेश कहा कि वह ब्रह्मचारी हैं और विवाह नहीं कर सकते. इंकार सुनकर तुलसी ने श्रीगणेश को शाप देते हुए कहा- आपका विवाह ज़रूर होगा. इस पर श्रीगणेश ने भी तुलसी को शाप दिया—देवी, तुम भी निश्चित रूप से असुरों द्वारा ग्रस्त होकर वृक्ष बन जाओगी. इस शाप को सुनकर तुलसी ने व्यथित होकर श्रीगणेश की वंदना की. तब ख़ुश होकर गणेशजी ने तुलसी से कहा कि आप पौधों की सारभूता बनेंगी और समयांतर से भगवान नारायण की प्रिया भी बनेंगी. सभी देवता आपसे स्नेह रखेंगे, लेकिन श्रीकृष्ण के लिए आप विशेष प्रिय रहेंगी. आपकी पूजा मनुष्यों के लिए मुक्तिदायिनी होगी, लेकिन मेरे पूजन में आप सदैव त्याज्य रहेंगी. ऐसा कहकर श्रीगणेश तप करने चले गए. मगर तुलसी देवी दुखी होकर पुष्कर में जा पहुंचीं और निराहार रहकर तपस्या में लीन हो गईं. यहां वह श्रीगणेश के शाप से चिरकाल तक शंखचूड की पत्नी बनी रहीं. जब शिव के त्रिशूल से उसकी मौत हो गई, तो वह नारायण प्रिया तुलसी के पौधे के रूप में सामने आईं. एक अन्य मान्यता के अनुसार तुलसी को पूर्व जन्म में जालंधर नामक दैत्य की पत्नी बताया गया है. जालंधर नामक दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर भगवान विष्णु ने अपनी योगमाया से जालंधर का वध किया था. पति की मौत से दुखी  तुलसी सती हो गईं. उनके भस्म से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ. तुलसी के त्याग से ख़ुश होकर विष्णु ने तुलसी को अपनी पत्नी बना लिया और वरदान भी दिया कि जो भी तुम्हारा विवाह मेरे साथ करवाएगा, वह मोक्ष प्राप्त करेगा. इसलिए कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान विष्णु से तुलसी का विवाह करने का प्रचलन है.

भारतीय संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों और इसकी उपयोगिता का ज़िक्र मिलता है.  इसके अलावा दवाओं में भी तुलसी का ख़ूब इस्तेमाल किया जाता है. यह भी कहा जाता है कि जहां तुलसी का पौधा होता है, वहां मच्छर नहीं आते. नज़ला-ज़ुकाम और बुख़ार होने पर तुलसी की पत्तियों का काढ़ा पीने से आराम मिलता है. तुलसी की लकड़ी की मालाएं भी बनाई जाती हैं. पौधे घर की ख़ूबसूरती में भी चार चांद लगाते हैं और इनसे पर्यावरण भी हरा-भरा रहता है. हां, पौधे भेंट करने से ख़ुशी और सुकून भी तो मिलता है न…

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh