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फ़िरदौस ख़ान
कहते हैं कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं, जिन्हें देखकर ख़ुशी हासिल होती है…किसी मासूम से चेहरे की मुस्कराहट आपकी सारी थकन मिटा देती है…आपको ताज़गी से सराबोर कर देती है…आप अपनी सारी उदासी और तन्हाई को भूलकर तसव्वुरात की ऐसी दुनिया में खो जाते हैं, जहां सिर्फ़ आप और आप ही होते हैं…या फिर आपका कोई अपना… हम बात कर रहे हैं एक तस्वीर की…एक ऐसी तस्वीर की, जो हमें बहुत अज़ीज़ है…इस तस्वीर का क़िस्सा भी बहुत दिलचस्प है… हम किसी काम से बाज़ार गए, वहां हमें एक फ़ोटोग्राफर की दुकान दिखाई दी… काफ़ी अरसे से हमें एक तस्वीर बड़ी करानी थी…हमने वहां बैठे लड़के से कहा कि भैया हमें इस तस्वीर की बड़ी कॉपी चाहिए…उसने कहा ठीक है- 100 रुपये लगेंगे…हमने हज़ार का एक नोट उसे पकड़ा दिया…उसने हमें नौ सौ रुपये वापस कर दिए और एक बड़ी तस्वीर दे दी…हम तस्वीर पाकर बहुत ख़ुश थे… उस वक़्त हमारे साथ हमारे एक दोस्त थे, उन्होंने कहा कि उस लड़के ने तुमसे एक ज़ीरो ज़्यादा लगाकर पैसे ले लिए…हमने कहा कि एक क्या वो दो ज़ीरो ज़्यादा लगाकर पैसे मांगता तो भी हम दे देते, क्योंकि जहां प्यार होता है, वहां मोल-भाव नहीं होता…यह तस्वीर हमारे लिए अनमोल है…
उस वक़्त लगा कि हमारे सामने एक गूजरी खड़ी मुस्करा रही है…एक बहुत दिलचस्प कहानी है…किसी डेरे पर एक फ़क़ीर आकर रहने लगा…वह एक पेड़ के नीचे बैठा इबादत करता… फ़क़ीर हर रोज़ देखता कि गूजरी दूध बेचने के लिए रोज़ वहां आती है…वो बहुत माप-तोल के साथ सबको दूध देती, लेकिन जब एक ख़ूबसूरत नौजवान आता तो उसके बर्तन को पूरा दूध से भर देती, यह देखे बिना कि बर्तन छोटा है या बड़ा… एक रोज़ फ़क़ीर ने गूजरी से पूछा कि तुम सबको तो बहुत माप-माप कर दूध देती हो, लेकिन उस ख़ूबसूरत नौजवान का पूरा बर्तन भर देती हो… गूजरी ने मुस्कराते हुए फ़क़ीर को जवाब दिया कि जहां प्यार होता है, वहां मोल-भाव नहीं होता…
हां, तो यह तस्वीर सिर्फ़ हम ही देख पाते हैं, क्योंकि यह हमारी डायरी में रहती है…उन नज़्मों की तरह, जो हमने सिर्फ़ अपने महबूब के लिए लिखी हैं…
जाने कब तक तेरी तस्वीर निगाहों में रही
हो गई रात तेरे अक्स को तकते तकते
मैंने फिर तेरे तसव्वुर के किसी लम्हे में
तेरी तस्वीर पे लब रख दिये अहिस्ता से… परवीन शाकिर
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)
तस्वीर गूगल से साभार
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